Biography | जीवनियॉं

डॉ. खादर वली

डॉ. खादरी वली’ का कथन है

‘’आज के समय में सेहतमंद रहना एक चुनौती बन गया हैं। ऐसे में अपने भोजन के बारे में जागरूक रहना हमारी जरूरत बन गई ।‘’

यह कथन है— भारत के मिलेट मैन यानि डॉ.खादर वली के।

‘डॉ. खादरी वली’ का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं। आज उन्‍हें ‘भारत के मिलेट मैन’ के नाम से पुरा विश्‍व जानने लगा हैं। हो भी क्‍यों ना उनके विचार उनके कार्य पुरी मानव जाति की भलाई के लिए जो हैं। उन्‍होंने पूरे समाज और विश्‍व को बदलने का सपना देखा और उसे पुरा करने के लिए वह अकेले ही चल निकले।

लोगों को स्‍वस्‍थ्‍य के प्रति जागरूक करना। उन्‍होंने अपना कर्तव्य समझा। लोगों को अपनी वैज्ञानिक समझ एवं शोधों से अवगत कराना प्रारंभ किया। जिन्‍होंने उसे समझा और अपनाया उन्‍हें लाभ प्राप्‍त हुआ। जिसका परिणाम यह हुआ कि उन की खयाति दूर-दूर तक फैलने लगी। लोग अपनी इच्‍छा से उनके बताए गए मार्ग पर चलने लगें और देखते ही देखते कांरवा बनने लगा।   

Dr. Kadar Vali

डॉ. खादर वली का संक्षि‍प्‍त परिचय

नामडॉ.खादर वली
जन्‍मआंध्र प्रदेश के कडप्‍पा जिले के प्रोड्डटुर गाँव में
माता-पिताहुसैनम्‍मा- हुसैनप्‍पा
कार्य क्षेत्रवर्तमान में स्‍वतंत्र वैज्ञानिक और पोषक तत्‍व विशेषज्ञ
राष्‍ट्रीयताभारतीय
शिक्षामैसूर महाविद्यालय से बी०एस०सी०, एम०एस०सी०   इंडियन इंस्टियूट ऑफ सांइस बैगलोर से स्‍टेरॉयड पर पी०एच०डी०
परिवारपत्‍नी- उषा वली
संतानबेटी- डॉ. सरला वली (होम्‍योपैथी डॉक्‍टर)  

उनका कथन हैं कि- 

‘’मैं लोगों को उनके द्वारा खाए जा रहे भोजन के प्रति इतना जागरूक कर देना चाहता हूं कि आने वाली पीढ़ी कहे कि मेरे दादा जी को कभी कैंसर हुआ करता था या मेरी दादी जी को कभी डायबिटीज अथवा कोई अन्‍य धातक बीमारी थी।‘’  

डॉ.खादर वली का जन्‍म

डॉ. खादर वली का जन्‍म आंध्र प्रदेश के कडप्‍पा जिले के प्रोड्डटुर गाँव में मध्‍यमवर्गीय परिवार हुसैनम्‍मा- हुसैनप्‍पा के घर हुआ।

डॉ.खादर वली की शिक्षा

इनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने जिले में हुई। फिर उच्‍च शिक्षा  प्राप्‍त करने यह मैसूर चले गए। वह मैसूर महाविद्यालय से बी०एस०सी० और एम०एस०सी० की शिक्षा प्राप्‍त कर उच्‍चतम शिक्षा के लिए बैगलोर आ गए। वहाँ इन्‍होंने इंडियन इंस्टिटयूट  ऑफ सांइस बैगलोर से स्‍टेरॉयड पर पी०एच०डी० की डिग्री प्राप्‍त की। फिर वह पर्यावरण विज्ञान पर पोस्‍ट डॉक्‍टरल फैलोशिप करने अमे‍रिका के बीवरदन ओरेगन चले गए।

डॉ.खादर वली का व्‍यवसाय

वहाँ अपनी फैलोशिप करने के उपरांत इन्‍होंने सैंट्रल फूड टेकनोलॉजिकल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट (CFTRI) में बतौर सांइसदान तीन साल काम किया। तत्‍पश्‍चात इन्‍हों ने अमेरिका बेसड  बहुराष्‍ट्रीय कंपनी (MNC) ‘डूपइंट’ में नौकरी कर ली। वह इन्‍होंने तीन साल नौकारी की।

डॉ.खादर वली केे जीवन की महत्‍वपूर्ण घटना

अमेरिका में नौकरी ज्‍वाइन करने से पहले जब वह डॉक्‍टरी परिक्षण कराने अस्‍पताल गए। तब उन्होंने वहाँ छह साल की बड़ी प्‍यारी बच्‍ची को देखा। जो आसमान में देख रही थी। उन्‍होंने उससे बात करने का प्रयास किया मगर बच्ची ने कोई जवाब नहीं दिया। तभी वहाँ उसकी मम्‍मी आ गई। तब उन्‍होंने बच्‍ची के बारे में उनसें बात की। तब उन्‍हें पता चला कि उसे महावारी शुरू हो चुकी थी। इतना ही नहीं उसे लगातार तीन महीने से महावारी हो रही थी। यह सुनकर वह बहुत परेशान हो उठें। तब वह सीधा उस डॉक्‍टर के कमरे में गए जो उस बच्‍ची का इलाज कर रहा था। जब उन्‍होंने बच्‍ची के रोग के विषय में डॉक्‍टर से बात करनी चाही तो, डॉक्‍टर ने बात करने से मना कर दिया। इतना ही नहीं , डॉक्‍टर ने उन्‍हें अपने काम से काम रखने की सलाह दी। परंतु इस बात ने उन्‍हें अंदर तक झकझोंर कर रख दिया। वह कई दिनों तक सदमें में रहें। उन्‍हें अपने वैज्ञानिक होने का कोई औचित्‍य नज़र नहीं आया।

तब उन्‍होंने समय से पहले इस अप्राकृतिक चलन पर रिसर्च आरंभ की। उन्‍हें पाया कि दूध की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए गाय, भैसों, बकरियों को आक्‍सीटोसिन (oxytocin) या इंस्‍ट्रोजन (estrogen) स्‍टेरॉयड दि‍ए जा रहें हैं। स्‍टेरॉयड के अंश दूध में आ रहें हैं। स्‍टेरॉयड के अंश मानव रक्‍त में आकर जमा हो रहें हैं। जिस कारण हार्मोंनस में असंतुलन होने लगा है। और वह समय से पहले ही निकलने लगे हैं। यह अप्राकृतिक चलन  दूध पीने के कारण आरंभ हुआ है।

डॉ.खादर वली की बीमारियों के प्रति सोच

अमेरिका में रहते हुए उन्‍होंने मानव में बीमारियाँ बढ़ाने वाले  कारणों की खोजबीन शुरू की। यह वह समय था जब फसलों का व्‍यवसायीकरण हो रहा था। तथा देश कि सरकारों द्वारा उन फसलों के उत्‍पादन पर बल दिया जा रहा था। किसान सिर्फ उन फसलों को उगाने में लगे थें जिनका प्रयोग फैक्‍टरियों में पैक्‍ड फूड बनाने में किया जाना था। साथ ही अधिक पैसों के लालच के लिए वह अंधाधुन किटनाशकों और उर्वकों का प्रयोग कर रहे थें।

बात सिर्फ यही तक सीमित नहीं रह गई थी। मानव ने अपने लालच के चलते बीजों से भी अनावश्‍यक छेड़छाड यानि  जेनेटिक मोडीफिकेशन करनी शुरू कर दी थी। जिससे बीजों की संरचना में हानिकारक असंतुलन उत्‍पन्‍न हो गया था। उदाहरण-

  • सरसों के बीज में ओमेग-3 और ओमेगा-6 का असंतुलन
  • गाय के जेनेटिक मोडीफिकेशन से प्रोटीन A -1 और प्रोटीन A-2 का भेद जिसमें एक कैसर कारक हैं तो दूसरा कैसर रोधक    

शोध का परिणाम और सामाजिक महत्‍व

धीरे-धीरे उन्‍हें यह साफ़ होने लगा कि अधिक उत्‍पादन व पैसों की लालसा के कारण पुरी मानव जाति‍ का स्‍वास्‍थ्‍य खतरें में आ चुका हैं। सभी देशों के आर्थिक मॉडल इस प्रकार बना दिए गए हैं कि किसान सिर्फ उन्‍हीं वस्‍तुओं का उत्‍पादन करने में लगें हैं। जिनका प्रयोग प्रसंस्‍कृत भोजन (processed food) के रूप में किया जाना हैं। किसान वह उगा रहा हैं जिससे उसे अधिक लाभ प्राप्‍त हो। हम सब वह खा रहे हैं जो हमें धीरे-धीरे बीमारियों की ओर धकेल रहा हैं।

तब उनका ध्‍यान इस ओर गया हमारे पूर्वज अधिक स्‍वस्‍थ्‍य और दीर्घ आयु कैसे रहते थें? उन्‍होंने इस विषय पर गहनतम शोध किया और पता लगाया कि‍ हमारे पूर्वज 150 साल पहले किस प्रकार का भोजन खाते थें? अपनी खोजबीन में उन्‍हें उन धान्‍यों (Millet) का पता चला जो आज विलुपति की कगार पर खडें थे।

डॉ.खादर वली के जीवन का महत्‍वपूर्ण निर्णय

एक डॉक्‍टर और वैज्ञानिक होने के कारण वह भोजन और शरीर की अंर्तक्रिया को सरलता से समझ पा रहे थे। अत: 1997 में उन्‍होंने अपनी MNC की अच्‍छी आय वाली नौकरी का त्‍याग कर मैसूर में बसने का निर्णय लिया।

मैसूर आकर इन्‍होंने स्‍वस्‍थ्‍य समाज का निर्माण करने के लिए स्‍वतंत्र वैज्ञानिक के रूप में अपना कार्य प्रारंभ किया। सर्वप्रथम उन्‍होंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। उनका कथन है-

‘’यदि हम स्‍वस्‍थ्‍य रहना चाहते हैं। तो हमें वापिस प्रकृति की और आना होगा।‘’

जंगल फार्मिंग

भारत लौटकर उन्‍होंने 8 एकड़ शुष्‍क जमीन खरीदी और वहां उन्‍होंने काडू कृषि पद्ति को अपनाया। उस भूमि पर सकारात्‍मक अनाज सहित 38 से अधिक प्रकार की फसलों को उगाया। इसे इन्‍होंने जंगल फार्मिग का नाम दिया। अपनी जंगल खेती में उन्‍होंने उन बीजों (millets) को अंकुरित (germination) करने में कड़ी मेहनत की जो विलुप्‍ती के कांगार पर थें। उन्‍होंने किसानों को समझाया यदि हम इन बीजों को 6 महीने से 3 साल के भीतर germination नहीं करते। तो वह अपनी अंकुरित क्षमता को खो देते हैं। तब हम इन्‍हें दुबारा प्राप्‍त न‍हीं कर सकते थे। इसी कारण हमने आज अपनी कई महत्‍वपूर्ण वनस्‍पतियों को आज खो दिया हैं।   

इतना ही नहीं खेतों कि मिट्टी की उर्वकता को बड़ाने के लिए डॉक्टर खादर ने “कोडू चैतन्‍य द्रव्‍य” का अविष्‍कार किया। जिसे वह माइक्रोबियल लिक्‍विड कहते है। इस तरल में सभी माइक्रोब्‍स होते हैं। इस माइक्रोबियल तरल को तैयार करने के लिए उन्‍होंने घने जंगलों में जाकर जहां मनुष्य का आना जाना एक साल से ना हुआ हो वहां से मिट्टी को लाकर उसे तैयार किया और इस जंगली एलेक्‍सर का खेतों में छिड़काव कर मिट्टी की उर्वक क्षमता को बढ़ाया।

स्वतंत्र वैज्ञानिक

प्रत्‍येक मिलेट में पाए जाने वाले पोषक तत्‍वों को उन्‍हों ने अपनी रिसर्च द्वारा पता लगाया। फिर उन पोषक तत्‍वों का मानव शरीर पर जैविक प्रभाव को समझा। इसे आधार बनाते हुए  उन्‍होंने मिलेटस मे पाए जाने वाले चिकित्सीय गुण (Healing properties) के आधार पर मिलेेटस को तीन वर्गों में बाँटा-  

मिलेटस के प्रकार | Types of Millets

  1. सकारात्‍मक धान / सिरि‍धान्‍य मिलेटस | Positive grains
  2. तटस्‍थ धान | Neutral grains
  3. नकारात्‍मक धान | Negative grains  

धान्‍यों का वर्गीकरण करने के साथ- साथ उन्‍होंने लोगों को समझाना शुरू किया। यदि वह मिलेेटस को अपना प्रधान भोजन बनाते हैं तो वह विभिन्‍न रोगों को पैदा करने वाले जीवाणुओं से अपनी सुरक्षा कर सकती हैं।

1. सकारात्‍मक धान / सिरि‍धान्‍य मिलेटस   | Positive grains

डॉ. खादर वली ने सकारात्‍मक अनाज कि श्रेणी में उन धान्‍यों को रखा, जिनमें चिकित्सीय गुण (Healing properties) पाए गए। उन्‍होंने उसे सिरि‍धान्‍य मिलेटस का नाम दिया। क्‍योंकि इन धानों के प्रयोग से मानव को आरोग्य की प्रा‍प्‍ति होती हैं। यह पाँच प्रकार के हैं- कंगनी (फॉक्‍सटेल मिलट), सान्‍वा (बेनयॉड मिलेट), कोदाएँ (कोडो मिलेट), कुटकी (मिलेट) छोटी कंगनी (बॉउनटॉप मिलेट)। 

2. तटस्‍थ धान | Neutral grains

वह धान जिनमें चिकित्सीय गुण तो नहीं होते। किंतु वह हमारे स्‍वास्‍थ्‍य को जैसा है वैसा ही बनाए रखने में मदद करते हैं। उन्‍हें डॉ. वली ने नाम दिया ‘तटस्‍थ धान’। यह भी पाँच प्रकार के हैं- बाजरा (परल मिलेट), रागी (फीगर मिलेट), चेेना (पोराेेसो मिलेट), जौआर (ग्रीन मिलेट), मक्‍का (कॉन मेजी)। 

3. नकारात्‍मक धान | Negative grains

   वह धान जो हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव डालते हैं। उन्‍हें डॉ. वली ने नकारात्‍मक धान का नाम दिया हैं। यह दो प्रकार के हैं- गेंहू (वीट), चावल (पेडी राइज)।  

पयार्वण में असंतुलन  

डॉ. वली का मानना हैं कि यदि हम अपने वायुमंडल को स्‍वच्‍छ करना चाहते हैं तो हमें वापस प्रकृति की ओर मुड़ना होगा। वर्तमान में मानव अपने लालच के चलते प्रकृति संसाधनों के अपव्‍य में लगा हैं। वह केवल उन्‍हीं फसलों का उत्‍पादन कर रहा हैं, जिनसे उसे अधिक धन की प्रा‍प्‍ति होती हैं। पर उन फसलों के उत्‍पादन से मानव के स्‍वास्‍थ्‍य और पयार्वण दोनों को नुकसान हो रहा हैं। जिस कारण पूरी मानव जाति विभिन्‍न प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ चुकी हैं। यदि हमें  अपनी भावी पीढ़ी को सुनहरा भविष्‍य देना हैं। तो हमें प्रकृति संसाधनों के अपव्‍य को रोकना ही होगा।  

उनके अनुसार एक किलो चीनी बनाने के लिए गन्‍ने को उगाने के लिए हमें 28,000 लिटर पानी की आवश्‍यकता होती है। इसी प्रकार एक किलो चावल उगाने के लिए हमें 8,000 लिटर पानी की आवश्‍यकता होती है। किंतु यदि हम एक किलो सकारात्‍मक अनाज उगाते है तो केवल 3,000 लिटर पानी की आवश्‍यकता होती है। इसलिए यदि हम चीनी और चावल को हटा कर गुड़ और धान्‍यों को अपने भोजन में स्‍थान देंगे तो हम अपने स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के अपव्‍यय को रोक पाने में सफल होंगे। क्‍योंकि पूरी पृथ्‍वी पर उपलब्‍ध पानी में से केवल 3% पानी ही पीने योग्य है। इस 3% पानी का 27% पानी साउथ पोल और नार्थ पोल पर गलेशि‍यर के रूप में जमा हैं। हमें केवल 0.3% पानी ही पीने के लिए उपलब्‍ध है। इसमें से भी 0.2% पानी कृषि और पशुओं को चला जाता हैं। हमारे पास पीने के लिए बचता हैं केवल 0.1% पानी। इसलिए हमें ऐसी फसलों का उत्‍पादन करना चाहिए जिनमें अधिक पानी की आवश्‍यकता ना हो।

मांसाहार से शरीर और प्रकृति में असंतुलन

डॉ.खादर वली के अनुसार मानव द्वारा अपने लालच के चलते अधिक पैसों की प्राप्‍ति हेतु मुर्गी, भेड़, बकरी और सूअर आदि के मांस को बढ़ाने के लिए स्‍टेरॉयड के इंजेक्‍शन दि‍ए जा रहें हैं। विज्ञान में इसे जैविक एकग्रता (bio- concentration) कहते हैं। यदि कोई मानव ऐसा मांस खाता हैं। तो उसके शरीर में हार्मोंन असंतुलत होने का खतरा बढ़ जाता हैं। जिससे कई गंभीर बीमारियाँ होने लगती हैं।

यही नहीं जब कोई व्‍यक्ति अपने जानवर से एक किलो मांस अधिक अधिक प्राप्‍त करना चाहता हैं। तो उसे 8 किलो अधिक चारा खिलाना होगा। यह तो सब जानते हैं कि चारे की पैदावार में भी कीटनाशक और रसायनिक उर्वकों का प्रयोग किया जाता है। जिसका सीधा अर्थ हुआ कि एक व्‍यक्ति को 8 किलो आनाज खाने से जो समस्‍या होगी। वह सिर्फ उसे एक किलो मांस खाने से ही एक बार में ही हो जाएगी।

इतना ही नहीं मांसाहार करने वाले व्‍यकित के शरीर में हानिकारक रसायन भी 8 गुणा ज्‍यादा बनते हैं। जिससे कार्बन उर्त्‍सजन भी अधिक होता हैं। कार्बन उर्त्‍सजन  अधिक होने से ग्लोबल वार्मिंग की समस्‍या को भी बढ़ावा मिल रहा हैं।  

डॉ.खादर वली केेअभि‍यान

वह पिछले 15 वर्षों से अपनी रिसर्चों से प्राप्‍त तथ्‍यों को आम जनता तक पहुँचाने में जुटे हैं। वह सिर्फ लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जागरूक नहीं करते बल्कि वह साथ में किसानों को भी मिलटस उगाने का प्रशिक्षण देने का कार्य भी कर रहें हैं। पिछले 15 वर्षों से कर्नाटक और पिछले 2 वर्षों से तेलुगु राज्‍यों में और देश के अन्‍य राज्‍यों में वह अपने कई कार्यशालाओं का आयोजन कर चुके हैं।

वह मिलटस को स्‍वास्‍थ्‍य की गोलियाँ कहते हैं। उन्‍होंने मिलटस से तैयार भोजन के माध्‍यम से अनेक गंभीर रोगों का सफल उपचार किया हैं। जब कोई व्‍यकित किसी रोग से ग्रसित होकर उनके पास पहुँचता हैं तब वह उसकी दवा की पर्ची पर मिलट से तैयार भोजन को लिखते हैं।

उनका माना हैं कि अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य पर सबका अधिका हैं। इसलि‍ए वह कहते हैं – ‘यदि आपका खाना सही हैं तो आपको दवा की अवश्‍यकता नहीं हैं।’  

हम डॉ. वली को सादर नमन करते हैं और उनके स्‍वस्‍थ्‍य व दीर्घायु जीवन की कामना करते हैं। आशा करते हैं कि यह जानकारी आपके अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य की प्राप्ति में सहायक होगी। यदि आप बाजरे (मिलेट) खाने के फायदों को जानना चाहते हैं तो आपको हमारी post ‘ मिलेट खाने के 12 फायदे ‘ को अवश्‍य पढ़ना चाहिए। कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें। इस जानकारी को अपने मित्रों और परिवार वालों के साथ Facebook, Quora पर शेयर करें ताक‍ि अन्‍य व्‍यक्ति भी इस जानकारी का लाभ उठा सके।

धन्‍यवाद!

    

Nalini Bahl

मैं Nalini Bahl, Paramhindi.com की Author & Founder हूँ।  मैने Delhi University से बी. कॉम और IGNOU से एम. ए. हिंदी किया है। मैं गंगा इंटरनेशनल स्‍कूल की एक ब्रांच की पूर्व अध्‍यापिका हूँ। पिछले कई वर्षों से मैं स्‍कूली पुस्‍तकें छापने वाले, कई प्रसिद्ध प्रकाशकों के साथ काम किया है। स्‍व‍तंत्र लेखक के रूप में कार्य करते हुए, मैंने कई हिंदी पाठ्य पुस्‍तकों और व्‍याकरण की पुस्‍तकों की रचना की है। मुझे नई-नई जानकारियाँ प्राप्‍त करना और उसे दूसरों के साथ बाँटना अच्‍छा लगता है।

10 thoughts on “डॉ. खादर वली

  • Pingback: सिरिधान्‍य मिलेट क्‍या हैं और यह कितने प्रकार के होते हैं? | What is Siridhanya Millet and how many types it has? - Param Hindi

  • Pingback: मिलेट्स के प्रकार - Param Hindi

  • Khushboo soni

    My mother is ill with brain cancer. How can u help

    Reply
    • Khushboo Soni ji I pray for you mother’s speedy recovery.
      first of all thanks for commenting. you want help from me regarding your mother’s brain cancer.
      so first of all I should clear, I am not a doctor. I am a Teacher & my duty is to educate people that’s why I write articles on self help regarding Health, Technology, Inspirational Stories for our mental & spiritual health.
      I CAN HELP YOU BY SENDING Dr. Khadar Vali PROTOCAL BOOKS BY MAIL
      I hop you follow the instructions which Dr. Kader wrote in the books

      Reply
  • विनीता कृष्णा

    नलिनी जी नमस्कार। मुझे टिनिटस और कम सुनाई देता है। दिमाग के अंदर भी तरह तरह की आवाज़ें सुनाई देती हैं। क्या मिलेट्स खाने से और कषायम पीने से कम हो सकता है?

    Reply
    • विनीता कृष्‍णा जी, सबसे पहले में आपका धन्‍यवाद करती हूँ, आपके comment के लिये।
      आपने अपनी बीमारी के विषय में मुझसे पूछा है। इसलिए मैं आपको सबसे पहले यह बताना चाहती हूँ कि मैं कोई डॉक्‍टर नहीं हूँ। मैं एक अध्‍यापिका हूँ इसलिए मेरा काम लोगों को अपनी से‍हत के प्रति जागरूक करना है। यही कारण है कि मै Physical, Mental & Spiritual health से जुडे विषयों पर लेख लिख रही हूँ। पर मैं आपको डॉ खादर वली की Protocol books email कर रही हूँ। जिसे पढ़कर आप अपनी बिमारी से छुटकारा पा सकती हैं। पर मुझे लगता है कि आपको अपने भोजन के साथ साथ योग को भी अपनी दिनचर्या का हिस्‍सा बनाने की जरूरत हैं। योग के द्वारा इस बीमारी का इलाज संभव है और मैंने बहुत लोगों को योग द्वारा इस बीमारी को ठीक करते पाया हैं।

      Reply
  • Nilophar khan

    I have digestive system problem also i am anemic i want to know more details about dr wali’s food

    Reply
    • Thanks for commenting. Since you have asked me about your problem I am mailing you Dr Khadar Wali’s book
      you can read it and then find the solution for your problem.

      Reply
  • vivek rege

    madam,
    I want to know how can we prepare testy dishes with Positive type of Millets. Also I want the book wrote by Dr. Khadar Sir.

    Reply
    • I am mailing you the book by Dr. Khadar Sir and you can watch tasty dishes video on youtube.

      Reply

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *