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डाॅ. खादर वली की काडूू कृषि क्‍या है?

डॉ . खादर वली की कोडू कृषि क्‍या है? यदि आप यह जानना चा‍हते है, तो यह पोस्‍ट आपके सभी प्रश्‍नों के उत्‍तर देने में सक्षम हैं। आप बिलकुल सही जगह पर आएं हैं। आइए जाने कोडू कृषि क्‍या है?…..  

‘काडू’ शब्द वास्‍तव में ‘कन्‍नड़ भाषा’ का शब्‍द है। जिसका कन्‍नड़ भाषा में अर्थ होता है ‘जंगल’ इसलिए इसे ‘जंगल कृषि’ ‍भी कहा जाता है।  

डॉ खादर वली के अनुसार कोडू कृषि भारत की ‘परंपरागत कृषि तकनीक’

है। जिसे आप मिश्रित कृषि (Mixed Farming) कह सकते है। आज से 70 साल पहले भारत में मिश्रित कृषि की जाती थी। इस परंपरागत कृषि तकनी में किसान अपने एक ही खेत में 7 से 8 तरह की फसलों को उगाते थे। यदि किसी भी कारण से एक फसल सही नहीं होती तो दूसरी फसल बिक जाती थी दूसरी भी यदि फसल ठीक नहीं होती थी तो तीसरी बिक जाती थी यदि तीसरी फसल भी ठीक नहीं होती थी तो चौथी फसल बिक जाती थी।

इस प्रकार एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ उगाने से जैव विविधता और कृषि पारिस्थिति तंत्र (Biodiversity and agriculture ecosystem) का निर्माण होता था। आप सोच रहे होंगे कि यह जैव विविधता और कृषि पारिस्थिति तंत्र क्‍या है? तो आइए पहले इसे समझते हैं।

kadu krishi

जैव विविधता और कृषि पारिस्थिति तंत्र क्‍या है? | What is Biodiversity and agriculture ecosystem in Hindi?  

वास्तव में जैव विविधता और पारिस्थिति तंत्र  (Biodiversity and agriculture ecosystem) आपस में गुथे हुए हैं। पहले बात करते हैं- जैव विविधता की

जैव विविधता |Biodiversity in Hindi

जैव विविधता से तात्‍पर्य पृथ्‍वी पर पाएं जाने वाले सभी सजीव जीवों के बीच पाई जाने वाली विभिन्‍नता से हैं। जिसमें सभी  पेड़-पौधों और वन्‍यजीवों की प्रजातियां आती हैं। सभी सजीव जीव मिलकर ही एक पारिस्थिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। क्‍योंकि सभी जीव एक दूसरे पर निर्भर हैं और एक दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

पारिस्थिकी तंत्र | ecosystem in Hindi

वहीं पारिस्थिकी तंत्र से तात्पर्य जीव-विज्ञान की उस शाखा से है, जिसमें सभी सजीव जीवों पर वातावरण (Environment) के प्रभाव तथा जीवों के आपस में पारस्‍परिक संबंधों पर रिसर्च की जाती है। जीव-विज्ञान की इस शाखा में यह देखा जाता है कि जीव- जन्‍तु कैसे पर्यावरण से प्रभावित होते हैं और वह किस प्रकार से वातावरण को कैसे प्रभावित करते हैं।

आज का विषय कृषि पर है तो मैंं यहां सिर्फ पेड़- पौधे के पारिस्थिकी तंत्र के विषय में ही बात करूंगी।

आप सब यह तो जानते ही हैं, हर पेड़- पौधे की ऊंचाई अलग-अलग होती है। इस कारण हर पेड़- पौधे की लंबाई के अनुसार ही उसकी जड़े नीचे मिट्टी में गहरी जाती है। उदाहरण के लिए एक पौधा जिसकी लंबाई 1 फुट है तो उसकी जड़ 1 फीट से ज्यादा नीचे मिट्टी में नहीं जाती। पर यदि किसी पेड़ की लंबाई 5-6 फुट है उसकी जड़े 4-5  फीट नीचे जाती है इसी प्रकार जब एक पेड़ जिसकी लंबाई  20 फुट होती है उसकी जड़ें 15 से 20 फीट तक नीचे जाती है और जो पेड़ 70 से 80 फुट लंबा होता है उसकी जड़ें मिट्टी में उतनी ही नीचे जाती है। और सभी पेड़- पौधे मिट्टी में विभिन्‍न प्रकार के पोषक तत्‍व प्राप्‍त करते है।

साइस के अनुसार, मिट्टी की अलग अलग परतों में अलग-अलग पोषक तत्‍व जमा होते हैं। यही कारण है कि हमें 1 से 2 फुट की जमीन और 2 से 10 फीट की जमीन और 10 फीट के नीचे की जमीन की न्यूट्रिएंट वैल्यू अलग- अलग देखने को मिलती है। इसलिए जब किसान एक ही खेत में 5 से 6 तरह की फसलों को उगाते थें तो उस खेत में उगी सभी फसलों को हम जो खेती करते हैं तो पेड़ों की ऊंचाई के आधार पर मिट्टी के पोषक तत्व फसल को मिलते हैं। इसलिए हमारे पूर्वज एक ही खेत में एक साथ अलग -अलग फसलों को एक ही समय में उगाते थे।

हर फॉल सीजन में जब प्लांट का टाइम पूरा हो जाता है और वह अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है। तब उसने जो मिट्टी में से न्यूट्रिएंट लिए थे और उसे उसने अपनी पतियों और तने में इकट्ठे किए थे। उन सब माइक्रोन्यूट्रिएंट् को वह वापस मिट्टी को दे देता है। पत्तियां और पौधे के तने मिट्टी में मिलन पर उनमें उमस की प्रक्रिया द्वारा यह प्रोसेस होता है। तब  पतियों में मौजूद पोषक तत्‍व वापस मिट्टी में मिल जाते हैं। सूखी पत्तियों मिट्टी में मिला कर खाद के रूप में काम करती है। अगली फसल के लिए वही मिट्टी सभी पोषक तत्वों को प्राकृतिक रूप से प्राप्‍त कर लेती है। किसानों को नई फसल को उगाने के लिए आर्टिफिशिल  फर्टिलाइजर की जरूत नहीं पडती। क्‍योकि विभिन्‍न प्रकार की सूखी पत्तियांं अपने अंदर जमा किए गए माइक्रो न्‍यूट्रिएन्‍ट्स को वापस मिट्टी को सौंप देती हैं।  

डॉक्टर खादर वाली के अनुसार हर फसल को कम से कम 70 तरह के माइक्रो न्यूट्रिएंट की जरूरत होती है इसलिए विभिन्न प्रकार के फसलों को मिट्टी की विभिन्न परतो में से पोषक तत्‍व प्राप्त करने के लिए कोडू कृषि तकनीक को अपनाना चाहिए।  श्रीधान्य फसलों की  जड़े 6 से 8 इंच तक नीचे मिट्टी के जाती हैं इसलिए उनमें सभी प्रकार के पोषक तत्व नहीं आ पाते इसलिए डॉक्टर खादर वाली कोडू कृषि तकनीक द्वारा मिलेट्स फसलों की खेती करने पर जोर देते हैं।

काडू कृषि / जंगल फार्मिंग / मिश्रित खेती करने के फायदे | Benefits of Kadu Farming in Hindi

1. काडू कृषि तकनीक से काम करने पर किसानों को अपने खेत में आर्टिफिशिल फर्टिलाइजर (उवर्को) के छिडकाव की जरूरत नहीं पडेगी।

2. विभिन्‍न प्रकार के पेड़- पौधों की जड़े खेत की मिट्टी को जकड़े रहेंगी जिससे मिट्टी के कटाव की समस्‍या का सामना किसान को नहीं करना पड़ेगा।

3. आर्टिफिशिल फर्टिलाइजर का प्रयोग ना करने से मिट्टी में मौजूद अच्‍छे न्‍यूट्रिएंट्स बने रहेंगे।

4. काडू कृषि को करने से किसान मोनो कल्‍चर की खेती यानि एक ही फसल की खेती करने से भूमि को होने वाले नुकसान से बचा सकता है।

5. पेड़- पौधों की की जड़े अपने खेत की मिट्टी को पकड़ कर बैठ जाती है किसानों को कभी सूखे का सामना नहीं करना पड़ेगा।

निष्‍कर्ष | Conclusion

आशा है इस लेख के माध्‍यम से आपको काडू कृषि / जंगल फार्मिंग / मिश्रित खेती के विषय में सारी जानकारी मिल गई होगी। यदि यह जानकारी आपको अच्‍छी लगी हो तो कृपया  अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें। इस जानकारी को अपने मित्रों और परिवार वालों के साथ Facebook, Quora आदि Social media platform पर share जरूर करें।  

धन्‍यवाद !

Nalini Bahl

मैं Nalini Bahl, Paramhindi.com की Author & Founder हूँ।  मैने Delhi University से बी. कॉम और IGNOU से एम. ए. हिंदी किया है। मैं गंगा इंटरनेशनल स्‍कूल की एक ब्रांच की पूर्व अध्‍यापिका हूँ। पिछले कई वर्षों से मैं स्‍कूली पुस्‍तकें छापने वाले, कई प्रसिद्ध प्रकाशकों के साथ काम किया है। स्‍व‍तंत्र लेखक के रूप में कार्य करते हुए, मैंने कई हिंदी पाठ्य पुस्‍तकों और व्‍याकरण की पुस्‍तकों की रचना की है। मुझे नई-नई जानकारियाँ प्राप्‍त करना और उसे दूसरों के साथ बाँटना अच्‍छा लगता है।

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