भाग्य की खोज | Inspirational Hindi kahani
एक कहानी जो आपका जीवन बदल सकती है। आप इस कहानी को video में देख और सुन भी सकते हैं-
चूनागढ़ गांव के सबसे धनी परिवार में हरिया का जन्म हुआ। घर में किसी चीज की कोई कमी ना थी इसलिए बड़े लाड प्यार से उसका लालन-पालन हुआ। समय के साथ-साथ हरिया युवा हो गया। पर वह कोई काम धंधा नहीं करता था। उसके माता-पिता जब उसे काम में हाथ बंटाने के लिए कहते तो कभी वह उनका कहना मान लेता और कभी अनसुना भी कर देता।
इसी प्रकार दिन गुजर रहे थे कि एक गांव में महामारी फैल गई जिसके चलते उसके माता पिता स्वर्ग सिधार गए।
अब हरिया पर अपने भरण-पोषण की समस्या आ खड़ी हुई, क्योंकि बाप- दादा द्वारा कमाई की संपत्ति भी धीरे-धीरे खत्म हो चली थी। एक दिन हरिया अपने हालत से परेशान होकर अपने घर के बाहर बैठा था। तभी अचानक उसने अपनी छाती पीट पीट कर रोना शुरू कर दिया। रोते रोते वह बोलने लगा- ‘’मेरा तो भाग्य ही खराब है, ना जाने मेरा भाग्य कहां चला गया है। अब मैं क्या करूंगा। जब हरिया ऐसे कह रहा था, तभी उस गांव के अध्यापक वहां से गुजर रहे थे। जब उन्होंने हरिया को यूं अपने भाग्य को कोसते देखा तो वह उसके पास आ गए और उससे बोले, ‘’हरिया तुम्हारी छाती पीटने से तुम्हारा भाग्य तुम्हारे पास वापस आने वाला नहीं है। तुम्हें खुद ही जाकर उसे वापस लाना होगा।’’
यह सुनकर हरिया मास्टर जी से बोला- “मास्टर जी,मैं उसे जाकर वापस तो ले आऊंगा। पर मैं उसे ढूंढ कहां?”
यह सुनकर मास्टर जी बोले- “यह तो मैं भी नहीं जानता कि तुम्हारा भाग्य कहां गया होगा। पर इस गांव के पूर्व में जो पहाड़ की चोटी है। उस पर एक महात्मा जी रहते हैं उन्हें अवश्य ही पता होगा। वह तुम्हें अवश्य ही बता सकते हैं कि तुम्हारा भाग्य कहां गया होगा? तुम्हें उनके पास जाना चाहिए!”
इतना सुनते ही हरिया की आंखों में चमक आ गयी। उसने मास्टर जी को धन्यवाद देते हुए कहा, “मास्टर जी मैं कल सुबह उनसे मिलने जाऊंगा।”
अगली सुबह हरिया जल्दी उठा। उसने कुछ अपने खाने पीने का सामान अपने बैग में रखा और अपनी यात्रा पर निकल पड़ा।
अपने गांव से निकलकर हरिया जब चलते-चलते जंगल में पहुंचा। तभी घोड़े पर सवार एक लुटेरा उनके सामने आकर खड़ा हो गया। जिसे देखकर हरिया कांपने लगा। तभी लुटेरे ने कड़कती आवाज में कहा- “तुम्हारे पास जो कुछ है सब मेरे हवाले कर दो, नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूंगा”
यह सुनकर हरिया डर गया और वह डरते डरते बोला, “मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं है। मेरा भाग्य तो पहले ही मुझसे दूर जा चुका है।”
“झूठ मत बोलो, तुम्हारे बैग में जो कुछ है उसे जमीन पर रख दो।” लुटेरे ने बात काटते हुए कहा।
हरिया ने अपने खाने के लिए जो सामान बैग में रखा था, वह सब निकाल कर उसने जमीन पर रख दिया।
लुटेरे ने फिर हरिया से पूछा, “तुम कौन हो? और तुम कहां से आ रहे हो? इधर कहां जा रहे हो?”
तब हरिया ने उसे बताया! मेरा नाम हरिया है और मैं चूनागढ़ का रहने वाला हूँ! मैं अपने भाग्य को खोजने के लिए निकला हूँ। पर मुझे उसका पता मालूम नहीं है। उस पहाड़ी पर रहने वाले महात्मा जी को अवश्य उसका पता मालूम होगा। इसलिए मैं उन्हीं के पास जा रहा हूँ।’’
यह सुनकर लुटेरे ने कड़कती आवाज में कहा, ‘’मैं तुम्हें तभी आगे बढने दूंगा, यदि तुम मेरे एक सवाल का जवाब महात्मा जी से ला कर दोगें तो।’’
तुम्हारा सवाल क्या है?
“मेरा भाग्य कब उदय होगा?”
यदि तुम मेरे इस सवाल का जवाब महात्मा जी से ला कर दोगे तो मैं तुम्हें इनाम दूंगा!
हरिया ने हामी भरी और आगे बढ़ गया।
चलते चलते दोपहर भी चुकी थी। भूख प्यास से बेहाल वह चला जा रहा था। उसके पेट में भूख के कारण दौडने वाले चूहे भी अब हड़ताल पर बैठ चुके थे। तभी उसे एक झरना और फलों से लदा बगीचा दिखाई दिया। तब हरिया सबसे पहले झरने के पास गया और उसने अपनी प्यास बुझाई। फिर वह फलों से लेदे बगीचे में आया। उसने कुछ फल थोड़े और खाने बैठ गया। जैसे ही उसने पहला फल मुंह में डाला उसे वैसे ही उसने थूक दिया। फिर उसने दूसरा फल मुंह में डाला उसे भी उसने थूक दिया। फिर उसने तीसरा फल मुंह में डाला उसे भी उसने थूक दिया। जब वह चौथा फल उठाकर मुंह में डालने ही वाला था। तभी संयोग से वहां एक व्यक्ति आ गया। उसने जब हरिया को यू फलों को थूकते देखा तो उसने हरिया से कहा, “जो भी इन फलों को खाता है, वह इन्हें यूं ही थूक देता है।”
“आपको कैसे पता?” हरिया ने उस व्यक्ति से प्रश्न किया।
“मुझे इसलिए पता है, क्योंकि यह मेरा बगीचा है।” उस व्यक्ति ने जवाब दिया।
“वैसे तुम कौन हो? और यहां कैसे आ गए?” उस व्यक्ति ने हरिया से सवाल किया!
तब हरिया ने उसे भी वही सब कुछ बताया। जो उसने लुटेरे को बताया था। इतना सुनते ही बगीचे का मालिक बोला “तुम तो महात्मा जी के पास जा ही रहे हो तो उनसे मेरे भी एक सवाल का जवाब लेते आना! बदले में मैं तुम्हें इनाम दूंगा
“तुम्हारा सवाल क्या है?” हरिया ने बगीचे के मालिक से पूछा।
“मेरा सवाल बस इतना सा है कि मेरे बगीचे के फल कड़वे क्यों आते हैं? और मैं उन्हें मीठा कैसे बना सकता हूँ?”
यह सुनकर हरिया ने कहा, “ठीक है भाई! मैं तुम्हारे सवाल का भी जवाब महात्मा जी से लेकर आऊंगा1”
यह कहकर हरिया आगे बढ़ गया।
चलते-चलते रात घिर आई थी। हरिया भूख से बेहाल हुआ जा रहा था। तभी उसे एक महलनुमा घर दिखाई दिया। उसके मन में विचार आया क्यों ना रात यहां गुजार कर सुबह सवेरे महात्मा जी के दर्शन किए जाए। यह सोचकर वह घर के अंदर चला गया। वहां उसे एक दंपत्ति और उनकी एक बेहद सुंदर बेटी मिली।
उन्होंने हरिया को अपना अतिथि मानकर भोजन कराया। भोजन करने के बाद दंपत्ति ने उसके यहां आने का कारण जानना चाहा। तब हरिया ने उन्हें बताया मैं अपने भाग्य को खोजने जा रहा हूं मुझे उसका पता मालूम नहीं है। पर पहाड़ पर रहने वाले महात्मा जी को अवश्य उसका पता मालूम है। इसलिए मैं उन्हीं के पास जा रहा हूँ।
तब उस दंपति ने उससे कहा, “हरिया यदि तूम महात्मा जी से हमारे भी एक सवाल का जवाब लाकर दोगे, तो हम तुम्हें इनाम देंगे।”
“आपका सवाल क्या है?” हरिया ने पूछा।
“तुम हमारी बेटी से तो मिल ही चुके हो। पर वह कभी खुश नहीं रहती।
यदि तुम आत्मा जिसे इसके खुश रहने का इलाज पूछ कर आओगे, तो हम तुम्हें इनाम देंगे।”
यह सुनकर हरिया बोला, “ठीक है मैं आपके सवाल का भी महात्मा जी से जवाब लेकर आऊंगा।”
अगले दिन सुबह हरिया उस दंपति से विदा लेकर महात्मा जी के आश्रम की तरफ चल पड़ा जब हरिया पहाड़ की चोटी पर पहुंचा, महात्मा जी अपने ध्यान में मग्न थे।
हरिया ने उन्हें प्रणाम किया और फिर उनके पास ही जमीन पर बैठ गया। कुछ देर बाद जब महात्मा जी की आंखें खुली तब हरिया ने फिर से प्रणाम किया।
महात्मा जी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसके आने का कारण पूछा। तब हरिया ने उन्हें बताया कि मेरे माता पिता की मृत्यु के बाद मेरा भाग्य मुझसे दूर चला गया है। पर मैं नहीं जानता वह कहां गया है। किंतु मुझे पता है कि आप सब जानते हैं, कि वह कहां गया होगा। कृपया आप मुझे उसका पता बता दीजिए। ताकि मैं उसे खोज कर अपने साथ वापस ले जा सकूं। इसलिए मैं आपके पास आया हूं यह सुनकर महात्मा जी बोले, “तुम्हारा भाग्य तो मेरे पास ही आया है।”
“तो फिर महाराज आप मेरे भाग्य को मेरे साथ चलने के लिए कहिए।” हरिया ने हाथ जोड़कर महात्मा जी से कहा।
“नहीं मैं उसे तुम्हारे साथ नहीं भेज सकता।” महात्मा जी ने कहा।
महात्मा जी मैं अपने भाग्य को अपने साथ लिए बिना वापस नहीं जाऊंगा। आप उसे कृपा का मेरे साथ चलने के लिए कहिए। हरिया यू बार-बार महात्मा जी से विनती करने लगा।
तब महात्मा जी कुछ देर मौन रहने के बाद हरिया से बोले, “हरिया में तुम्हारे भाग्य को तुम्हारे साथ तो नहीं भेज पाऊंगा। पर हां, मैं उसे तुम्हारे पीछे- पीछे अवश्य भेज सकता हूँ।”
हरिया ने हाथ जोड़कर महात्मा जी से कहा, “ठीक है महाराज! आप उसे मेरे पीछे- पीछे ही सही। उसे मेरे पास अवश्य भेज दीजिए!”
“हां हां! हरिया में उसे तुम्हारे पीछे- पीछे अवश्य भेज दूंगा” महात्मा जी ने उसे आश्वस्त किया। उसके बाद हरिया ने अपनी यात्रा के दौरान मिले अन्य व्यक्तियों के सवालों के जवाब भी महात्मा जी से प्राप्त किए। फिर हरिया महात्मा जी से विदा लेकर अपने घर की ओर चल दिया।
सबसे पहले हरिया महलनुमा घर वाले दंपत्ति के पास पहुंचता है। उन्हें उनके सवाल का जवाब देकर बिना समय गवाएं अपनी यात्रा फिर से आरंभ कर देता है।
फिर वह झरने के पास वाले फलों के बगीचे में पहुंचता है। फलों के बगीचे में पहुंचते ही हरिया को बगीचे का मालिक दिखाई दे जाता है। वह जल्दी-जल्दी उस तक पहुंचता है और उसे उसके सवाल का जवाब जो महात्मा जी ने दिया था बताकर अपनी यात्रा फिर से शुरू कर देता है।
चलते चलते जैसे हरिया जंगल में पहुंचता है। तभी लुटेरा उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है और हरिया को पहचान लेता है।
“तुम्हारी यात्रा कैसी रही? क्या तुम मेरे सवाल का जवाब लेकर आए हो?” लुटेरा उससे पूछता है।
हरिया हां में सिर हिलाता है।
जिसे देखकर लुटेरा कहता है, “डरो मत। मुझे खुल कर बताओ। महात्मा जी ने मेरे सवाल का क्या जवाब दिया।”
तब हरिया लुटेरे को बताता है कि वे उनके सवाल के जवाब के साथ साथ दो अन्य व्यक्तियों के सवालों के जवाब माताजी से लेकर आया था और उन्हें जवाब बता कर ही आ रहा है यह सुनकर लुटेरे की जिज्ञासा बढ़ जाती है।
उससे हरिया से कहा, “मुझे सब कुछ, उन दो व्यक्तियों के विषय में, उनके सवालों और महात्मा जी के जवाबों के विषय में खुल कर बताओ।”
तब हरिया उसे बताता है कि यहां से कुछ दूर एक झरना है। उस झरने के पास एक फलों का बगीचा है। उस बगीचे में सभी फल कड़वे आते हैं। इसलिए उस बगीचे का मालिक महात्मा जी से यह जानना चाहता था कि उसके बगीचे के फल मीठे कैसे होंगे।
यह सुनकर लुटेरा बोला, “अच्छा अब यह बताओ महात्मा जी ने इसका क्या जवाब दिया?”
महात्मा जी ने बताया है कि जिस झरने के पानी से फलों के बगीचे की सिंचाई होती है। उसके नीचे सोने का खजाना छिपा है। यदि बगीचे का मालिक वहां से उस खजाने को हटा देगा। तो उसके बगीचे के फल मीठे हो जाएंगे।
“अच्छा अब यह बताओ बगीचे के मालिक ने तुम्हें कुछ इनाम दिया।”
लुटरे ने हरिया से फिर प्रश्न किया।
“हां! बगीचे का मालिक कह रहा था, यदि मैं कुछ देर इंतजार करूं तो वह झरने के नीचे से खजाना निकाल लेगा और वे इनाम के रूप में मुझे खजाना दे देगा।” हरिया ने उत्तर दिया।
“तो तुमने सारा खजाना ले लिया।” लुटेरे ने फिर से पूछा।
“नहीं! मैंने उसे बता दिया कि मेरा भाग्य तो मेरे पीछे-पीछे आ रहा है इसलिए मैं खजाना निकालने तक का इंतजार नहीं कर सकता मैं जल्द से जल्द अपने घर पहुंच जाना चाहता हूँ!”
अच्छा अब बताओ दूसरा व्यक्ति कौन था? उसका सवाल क्या था? और महात्मा जी ने उसका क्या जवाब दिया?” लुटेरे ने पूछा।
“दूसरा व्यक्ति वास्तव में महल में रहने वाला दंपत्ति है। उनकी एक बेहद खूबसूरत बेटी है जो कभी खुश नहीं रहती है। इसलिए उसके माता-पिता महात्मा जी से यह जानना चाहते थे। कि वे ऐसा क्या करें ताकि उनकी बेटी खुश रह सके।” हरिया बोला।
“महात्मा जी ने इसका क्या जवाब दिया!” लूटेरे ने फिर पूछा।
“महात्मा जी ने कहा है, जब उसके माता पिता उसकी शादी कर देंगे तो उनकी बेटी खुश रहने लगेगी!” हरिया ने बताया।
“अच्छा बताओ उस दंपति ने तुम्हें क्या इनाम दिया।” लुटेरे ने हरिया से फिर सवाल किया।
“हां! वे दंपत्ति मुझसे कह रहे थे कि मैं उनकी बेटी से शादी कर लूं तो वह इनाम में मुझे अपना घर दे देंगे।”
“तो तुमने क्या किया? उससे शादी कर ली!” लुटेरे ने आश्चर्य से पूछा।
“नहीं! मैंने शादी नहीं की। मैंने उन्हें बता दिया कि मेरा भाग्य तो मेरे पीछे-पीछे आ रहा है!”
“अच्छा अब यह बताओ महात्मा जी ने मेरा भाग्य उदय होने के विषय में क्या कहा है!”
“महात्मा जी ने कहा है, जिस दिन से तुम लोगों की मदद करनी शुरू कर दोगे उस दिन से तुम्हारा भाग्य उदय हो जाएगा।” – हरिया बोला।
यह सुनकर लूटेरा बोला, “तुम मेरे सवाल का जवाब लेकर आए हो, मैंने तुम्हें अपना घोड़ा इनाम में देता हूँ।”
यह सुनकर हरिया लुटेरे से कहता है, “नहीं भाई मैं घोड़े का क्या करूंगा मेरे पीछे तो मेरा भाग्य ही रहा है मुझे इनाम नहीं चाहिए मैं तो बस जल्दी अपने घर पहुँच जाना चाहता हूँ!”
यह कहकर हरिया आगे बढ़ गया।
घर पहुंचकर हरिया अपने भाग्य का इंतजार करने लगा। थके होने के कारण हरिया को नींद आ जाती है। नींद में उसे वही महात्मा दिखाई देते हैं जिनसे मिलकर वह आया था। सपने में महात्मा जी हरिया से कहते हैं- “मैंने तुम्हारे भाग्य को तुम्हारे पीछे- पीछे भेजा था। पर तुमने उसे अपने पास आने ही नहीं दिया।” यह कहकर महात्मा जी अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
दोस्तों यह कहानी बस इतनी ही थी।
कहानी से सीख | Moral of the story
इस कहानी से हमें दो सीख मिलती हैं-
1) कर्म करने से भाग्य बनता है
2) यदि भाग्य को बदलना है, तो हमें अपने कंफर्ट जोन से बाहर आना होगा।
आपने इस कहानी में देखा हरिया अपने भाग्य को वापस इसलिए लाना चाहता है, ताकि उसकी आर्थिक स्थिति सुधर सके। इसके लिए वह कर्म करते हुए महात्मा जी के पास भी जाता है। पर अपने भाग्य को बदलने के लिए उसे अपने कंफर्ट जोन से बाहर आना था। पर वह इसके लिए तैयार नहीं था।
वह बस यही सोच रहा था भाग्य उसे फॉलो कर रहा होगा। दोस्तों हम में से भी कुछ लोग ऐसे हैं जो यही सोचते रहते हैं कि भाग्य उनके पास आएगा। पर वे यह नहीं जानते कि कभी भी किसी को भी भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। बल्कि भाग्य हमें फॉलो करे ऐसे काम करने चाहिए। इसलिए ही श्री कृष्ण ने कहा है “कर्म करे किस्मत बने जीवन का यह मर्म प्राणी तेरे हाथ में, तेरा अपना कल, तेरा अपना कल!”