घंमड का परिणाम | Inspirational Hindi kahani
जंगल में एक बहुत बड़ा हरा-भरा घना वृक्ष था। उस वृक्ष के आस-पास छोटी-छोटी, हरी-हरी घास उग आई थी। दोनों पास-पास होने के कारण आपस में बातें भी कर लिया करते थे। वैसे तो वृक्ष, घास को अपना मित्र कहता था। परंतु-अंदर- ही-अंदर वह उसे पसंद नहीं करता था। उसे अपने विशालकाय शरीर पर बहुत घमंड था। इसलिए वह अपने से छोटी घास को बहुत तुच्छ मानता था।
दूसरी तरफ छोटी घास भी यह बात समझती थी, पेड़ उसे पसंद नहीं करता। उसे अपने विशालकाय शरीर पर घमंड है। पर इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि वह जानती थी कि प्रकृति में सभी चीजें काम की हैं। वह यही सोचती कि यदि मेरा कोई महत्व नहीं होता तो प्रकृति मुझे बनाती ही क्यों ? अवश्य ही मैं भी बहुत काम की हूँ।
अक्सर वृक्ष बातों-बातों में घास को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था।
एक दिन एक राहगीर वहाँ से गुजर रहा था। हरे-भरे विशाल वृक्ष को देखकर वह उस पेड़ के नीचे घास पर आराम करने लगा। यह देखकर उसने घास से कहा, “देखो मेरी छाया में राहगीर कितने आराम से सो रहा है। मैं राहगीरों को गरमी, बरसात और ठंड तीनों में आराम पहुंचाता हूँ”।
वृक्ष की बात सुनकर घास से भी रहा न गया। वह पेड़ से बोली, “वृक्ष दादा! आप बरसात में और गर्मी में तो राहगीरों को आराम देते हैं। यह बात तो मेरी समझ में आती है। परंतु आप ठंड में उन्हें आराम देते हैं, यह बात मेरी समझ में नहीं आती है।”
घास की बात सुनकर पेड़ को लगा कि घास ने उसका बड़प्पन स्वीकार कर लिया है, इसलिए वह नरम होकर बोला, “हाँ, तुमने ठीक प्रश्न किया है, पर मैं ठंड में राहगीरों को कैसे आराम देता हूँ? अब यह भी सुनो – वह मेरी सूखी लकड़ियाँ जलाकर तापते हैं। इससे उन्हें ठंड में आराम मिलता है। मगर तुम तो यह काम भी नहीं कर सकती हो।”
घास कब चुप रहने वाली थी वह बोली– “वृक्ष दादा! आप जलकर आराम देते हैं तो मैं जानवरों के पेट में जाकर उन्हें ऊर्जा और ताकत देती हूँ, जिससे उन्हें बल मिलता है, और वे ठंड से लड़ने में सक्षम हो जाते हैं।”
“अच्छा!” पेड़ को घास का इस तरह बोलना अच्छा नहीं लगा, “और तुम क्या-क्या कर सकती हो, जरा बताना तो…?”
घास कुछ बोलने ही जा रही थी, कि तभी बहुत जोरों की आंधी चलने लगी। और हवाएं इतनी तेज थी कि वृक्ष, जो बहुत विशाल था, वह भी हवा के कारण झुकने लगा। घास अपने आप को संभालने में लग गई। इस कारण वह कुछ बोल नहीं पाई। तभी आसमान में घनघोर काले बादल छा गए। आंधी और तेज हो गई। वृक्ष को अपने विशाल शरीर पर बड़ा घमंड था, इसलिए उसने सोचा केवल हवा के कारण वह कैसे झुक सकता है, इसलिए वह हवा के सामने डट कर खड़ा हो गया। वह झुकने की बजाय अकड़ कर सीधा खड़ा रहा।
परंतु घास जानती थी कि हवा के साथ रहना, उसके साथ झुकना ही उस समय की आवश्यकता है। यदि मैं हवा के बहाव में अपना घमंड दिखाऊँगी तो मैं उखड़ जाऊंगी। इसलिए यह समय की आवश्यकता है कि हवा का झोंका जिधर से आए, उसके साथ झुक जाओ। दूसरी तरफ पेड़ अकड़ कर सीधा ही खड़ा रहा।
अचानक हवा का ऐसा बहाव आया कि पेड़ उखड़ कर घास पर गिर पड़ा। वही घास, जो हवा के साथ झुक रही थी। वह इस तूफान को झेल गई। वृक्ष के गिरते ही घास ने कहा, “वृक्ष दादा! आपको कहीं लगी तो नहीं?”
पेड़ घास पर पड़ा-पड़ा सोच रहा था, काश! मैं भी घास की तरह झुकना जानता तो मैं भी आज शान से खड़ा रहता। यदि मैंने अपनी अकड़ न दिखाई होती, तो आज मैं भी शान से खड़ा होता।
पेड़ के घमंड ने ही उसके काल को न्योता दिया था। हवा के आगे उसका विशाल शरीर उसके कोई काम नहीं आया था।
बारिश भरे तूफान के बाद घास की रौनक और बढ़ गई थी। अब वह पहले से ज्यादा ताजी और हरी-भरी लग रही थी। वहीं पर जो पहले विशाल एवं हरा-भरा घना वृक्ष था वह अब नहीं था। पेड़ के नाम पर बस बची थी उसका ठूंठ, इसीलिए कहा जाता है घंमड का परिणाम सदैव बुरा ही होता है। इसलिए यह कहावत मशहुर है- “घमंडी का सिर नीचा होता है!”
जीवन मूल्य : प्रकृति में सभी का अपना-अपना महत्त्व है। हमें सबका आदर और सम्मान करना चाहिए।
शोभनम।
बहुत सुन्दर।
Atyant Prbhavshali Kahani h
अति उत्तम,कहानी के द्वारा जीवन के मूल्य को बहुत सुंदरता से पिरोया गया है। अहंकार किसी को कभी भी गिरा सकता है,इस शिक्षा को प्रकृति के साथ संबंधित करना बहुत रचनात्मक लगा। लेखिका जी ऐसे ही लिखती रहें, यही हमारी प्रार्थना है,उपन्यास से उत्तम लघु कथाएं इसलिए अधिक प्रचलित हैं और रहेंगी।